दलित किचन के बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं। जैसा शाहू पटोले जी ने कहा, “दलित क्या खाते हैं, कोई नहीं जानता।”
वो क्या खाते हैं, कैसे पकाते हैं, और इसका सामाजिक और राजनीतिक महत्व क्या है, इस जिज्ञासा के साथ, मैंने अजय तुकाराम सनदे जी और अंजना तुकाराम सनदे जी के साथ एक दोपहर… pic.twitter.com/yPjXUQt9te